...

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चलो आज वो शाम की महफिल फिर सजाई जाए
चलो क्यों न एक महफिल सजाई जाए

जितनी बिछड़ी है सबकी महबूबाऐ बुलाई जाए

बस हिज्र की बातें मत करना उनसे

अब क्यों ही किसी की औरत रुलाई जाए

और संभाल कर

वह देखेगी तुम जताते कितने हो

फिर बात-बात में पूछेगी अब कमाते कितने हो

फिर कहेगी कि अकेले हो या कोई आया है साथ में

या अब तक नहीं दिए यह हाथ किसी के हाथ में

फिर...