...

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डर लगता है
अब अकेलेपन से नहीं
नए लोगो से डर लगता है।
सुलझे से चेहरों की
उलझी सोच से डर लगता है।

मासूमियत का नकाब पहने
शातिर दिमाग से डर लगता है।
ख़ुद को छुपाते हर अनजान से
पास आते हर एक तूफ़ान से
अब तो मुझे डर लगता है।

अविरत प्रवाह के ढहराव से
चमकती शख्सियत के खीचाव से
आदत लग जाने के भाव से
अब तो मुझे डर लगता है।