कंचन काया
सुंदर कहूं कि मयावी काया,
यह बात समझ मैं न पाया
सुंदरता तो मन में होती है
माया होती कंचन काया
क्या समझ न पायी थी सीता,
कंचन काया की वह माया,
या गुण ही कंचन की है ऐसा,
जिससे कोई बच न पाया,
ऋषि मुनि को यह किया बिखंडित,
मन को किसके यह न भाया,
रुप आशंकित बड़ा अचम्भित,
समझ इसे ,न कोई पाया
राजा हो या हो शासक
है कौन जिसे वह छला नहीं
अंग...
यह बात समझ मैं न पाया
सुंदरता तो मन में होती है
माया होती कंचन काया
क्या समझ न पायी थी सीता,
कंचन काया की वह माया,
या गुण ही कंचन की है ऐसा,
जिससे कोई बच न पाया,
ऋषि मुनि को यह किया बिखंडित,
मन को किसके यह न भाया,
रुप आशंकित बड़ा अचम्भित,
समझ इसे ,न कोई पाया
राजा हो या हो शासक
है कौन जिसे वह छला नहीं
अंग...