...

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“अनकहे एहसास ”
सूना सूना था सारा तारामंडल
सागर में बूंद जैसे सितारों जड़ी

इक तरफ़ था अथाह समंदर
इक तरफ़ बेबस मैं थी खड़ी

शोर बहुत था मन के अंदर
बहार पसरी थी ख़ामोशी बड़ी

दोनो में था क्यों इतना अंतर
असमंजस में थी मैं भी पड़ी

यादों की लहर का उठता बवंडर
मुश्किल से गुजरती है वो घड़ी

मन में भी होता मंथन अक्सर
जुड़ने लगती सिलसिलों की कड़ी

बादल ठहरता कोरो में आकर
आंखो से बरसने लगती झड़ी

सोचूं क्यूं रह जाता सब बिखरकर
अपने लिए मैं क्यूं नहीं लड़ी

अब न बिखर अतीत में उलझकर
सागर की तरह तुम रहना अड़ी

देख रहा सब कुछ परमेश्वर
किस बात की दिखाते लोग तड़ी
#vineetapanchal
© #vineeta