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...भावों के हिमनद...
हमारे अंतर्मन में भावों के ये हिमनद
तुम्हारे लिए पिघलते हैं
पिघलते तो तुम भी हो
क्यूं धार हमारी तरफ बहने से रोकते हो
बहने दो,मिलने दो,
दो धार एक होने दो,
चीरेंगे पहाड़ और पठार,
गिरेंगे दरिया में सैलाब बनकर
बहेंगे समंदर तक साथ मिलकर।
© @mr.rupeshkumar