:-प्रेम बाग-:
पहले बताना था, कि मन्ज़िल ही नहीं है प्यार की,
उनकी कसम, उस रास्ते पर हम नहीं जाते।
अंजाम से पहले ही यूँ ,अनजान राहों पर कहीं,
फूलों की सुंदर बाग में, नाहक नहीं आते।
सुन्दर सजाया हो बड़े, नायाब फूलों से जिसे,
बागी के संग वो बाग सुन्दर, रह नहीं पाते,
सुनता हूँ कि उस बाग में, माली नया आया है पर,
अब तो दरख्तों पर, परिन्दे भी नहीं आते।।
© श्रीश मणि त्रिपाठी 'शुभम्'
उनकी कसम, उस रास्ते पर हम नहीं जाते।
अंजाम से पहले ही यूँ ,अनजान राहों पर कहीं,
फूलों की सुंदर बाग में, नाहक नहीं आते।
सुन्दर सजाया हो बड़े, नायाब फूलों से जिसे,
बागी के संग वो बाग सुन्दर, रह नहीं पाते,
सुनता हूँ कि उस बाग में, माली नया आया है पर,
अब तो दरख्तों पर, परिन्दे भी नहीं आते।।
© श्रीश मणि त्रिपाठी 'शुभम्'