...

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हसरतें हज़ार हैं…..
सुनो तुम
आज फिर से
मैं तन्हा हूँ

अपनी ही
हसरतों के बाज़ार में

और
बैठा हूँ
उसी पुराने दरख़्त के नीचे

जहाँ से
उस शाम
तुम चलीं गई थी
मुझसे हाथ छुड़ाते हुए

जानती हो
आज भी
उस दरख़्त के परिंदे
गाते हैं हमारे प्यार के गीत

और
सुनाते हैं सबको
तुम्हारी बेवफ़ाई के क़िस्से
अपनी ही राग में

जिन्हें सुनकर
रो देता हूँ
अक्सर मैं
तुम्हारी याद में
उस दरख़्त के लिपटते हुए

जहाँ
बसाए थे हमने
हसरतों के हज़ार ख़्वाब

और, जो बिखर गए थे
उस शाम
एक ही दम में
तुम्हारे यूँ चले जाने के बाद….

#हसरते_हजार_हैं
© theglassmates_quote