...

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तुम्हारा तक़ब्बुर और प्यार
हम जिसपर मर मिट जाँए, वो गम व सितम तुम हो पाओगे कहाँ ?
पर हम जब चाहें, तुम जैसे को बेशक खड़ा कर सकते है यहाँ ।।

चन लम्हों वाली जिस हुस्न की मिल्कियत पे है तुम्हें इतना नाज़ ।
लूट जाएगी किसी न किसी पे वो, छिपी है न छुपेगी किसी से ये राज़ ।।

मोहब्बत का प्याला भला… तुम जैसे सरफिरे से हम क्यूँ पिये ?
जिसने जिया नहीं है खुदके सिवा कभी और किसीके लिए ।।

चलो ये मान भी लें की तुमने अब अपनी तक़ब्बुर छोड़ दी होगी ।
पर इसके इलावा और क्या बाकी रहेगा जिसपर तुम गुरुर करोगी ?

खैर छोड़ो प्यार में बिन दौलत… अपनी नफ़्स की सौदेबाजी तुमसे न हो पाएगी ।
वक्त के साथ तुम्हारी इश्क भी सुखे पत्तों सी दम तोड़कर पलभर में फ़ना हो जाएगी ।।

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© सराफ़त द उम्मीदभरे क़लाम