...

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जिंदगी की राहें
जिंदगी की राहें भी अजीब होती हैं,
चाहते हैं हम जिन राहों पर चलना,
वो राहें ही जुदा हो जाती हैं।

बदल जाते हैं लोग, गुम हो जाती हैं राहें,
नहीं सूझता कुछ भी, कहां जाएं,
क्या करें, कैसे दिल को तसल्ली दें।

दर्द होता है बहुत तो,
रो भी नहीं पाते हैं,
मुस्कुराहटों में अपने गम को भुलाते हैं।

बिछड़ गया है जो, कभी लौटेगा नहीं,
वक्त का दरिया है, जो बह गया एक बार,
मुड़ कर वापिस आएगा नहीं।

बढ़ चला दिल, एक नए राह की ओर,
कर रही है इंतजार, उम्मीद की
एक नई भोर।

गर होता वो साथ तो,
फिर बात ही क्या होती,
जीवन की हर शाम
बेहद खुशनुमा होती।

होती है महसूस आज भी तेरी कमी,
पर नहीं आने दी हमनें आंखों में नमी।

वक्त का पहिया घूम रहा है,
उन राहों पर लेकर जा रहा है,
भूल गए थे हम जिनको,
उनसे हमें मिला रहा है।

© ठाकुर बाई सा