#खोईशहरकीशांति
#खोईशहरकीशांति
ओ शहर अपनी पहचान
अंधेरों में छुपाते क्या हो?
इतना जानकर भी
अनजान भटकते कहाँ हो?
कितनी ही कश्ती बहती है,
गंगा घाट पे मछवारों की!
और जाने कितने ही किस्से
रंगते है लहुँ के तलवारों की।
तुम इतना शांत होकर भी,
इतना सब सहते कैसे हो?
जगमगाते शहर को,
लालटेन की आदत थी।
सुबह के चाय...
ओ शहर अपनी पहचान
अंधेरों में छुपाते क्या हो?
इतना जानकर भी
अनजान भटकते कहाँ हो?
कितनी ही कश्ती बहती है,
गंगा घाट पे मछवारों की!
और जाने कितने ही किस्से
रंगते है लहुँ के तलवारों की।
तुम इतना शांत होकर भी,
इतना सब सहते कैसे हो?
जगमगाते शहर को,
लालटेन की आदत थी।
सुबह के चाय...