...

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गिरहे
कुछ अनसुलझी गिरहे खोलना चाहता हुँ
मै अब दिल की दास्ताँ बोलना चाहता हुँ !

तुम से फिर उस शजऱ तले मिलना चाहता हुँ
वजह तुम्हारे रुसवाई की जानना चाहता हुँ !

चला गया है जो छोडकर साथ बिच राह
उस हमराह का हाथ फिर थामना चाहता हुँ !

चल रही है पुरजोर...