आखिर तुझमें मेरा क्या है
आख़िर क्या है तुझमें जो सबमें नहीं, तुम मुझे याद क्यों आती हो, क्यों मेरे ख्यालों में रात भर चलती रहती हो, क्यों में तेरे बैगर रह नही पाता, क्यों तेरी यादें मेरी करवटें बदलते रहती है
क्यों तेरी बाते मेरे तकिए गिला करती हैं, क्यो तुम मुझमें हो, में तुम्हे भूल क्यों नहीं पा रहा, मैं तुम्हारे किसी भी हिस्से में नहीं हूं, फिर तुम क्यों मेरे रोम रोम में बसी हो..?
आख़िर तुझमें मेरा हैं ही क्या, तुम्हारे दिए हर चीज़ को मिटा दिया है ,
फिर क्यों...
क्यों तेरी बाते मेरे तकिए गिला करती हैं, क्यो तुम मुझमें हो, में तुम्हे भूल क्यों नहीं पा रहा, मैं तुम्हारे किसी भी हिस्से में नहीं हूं, फिर तुम क्यों मेरे रोम रोम में बसी हो..?
आख़िर तुझमें मेरा हैं ही क्या, तुम्हारे दिए हर चीज़ को मिटा दिया है ,
फिर क्यों...