...

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!! अंधेरे में कही !!
अँधेरे में कहीं
खो गई है मेरी परछाई
मुझ से पूछती है
मेरी तन्हाई की
कहां है तुम्हारा साया
ये काली रात
कुछ अनकहा अफसाना
सुना रही मगर अब
मेरे पास रात कों साथ
देने क़े लिए
सिर्फ मेरे सिवा
कुछ भी नहीं
अब मैं हूं और
घनी अँधेरी तन्हा रात
और तेरी यादों की खुशबू
के सिवा रात का
अनकहा अनदेखा
अनसुना अफसाना
देखने के लिए
सुनने के लिए
दूर दूर तक मेरे सिवा कोई नहीं है ........
© राजेश पंचबुधे