P3 - छुट्टी की अर्जी...!
काश...
बस ये एक अर्जी मेरी मंज़ूर हो जाये,
दो-तीन दिनों की मुझको,
ज़िन्दगी से फुरसत मिल जाये...!
ना जाने वक़्त के...
कौन से शहर,
कौन सी गली या नुक्कड़,
किस अजनबी मोड़ पे,
किस भरी दोपहर, जाने किस पीपल की छाव में,
समंदर के कौन से साहिल की रेत पे,
दिन के किस पहर की दीवार पे,
आँगन की कौन सी मिट्टी पे,...
बस ये एक अर्जी मेरी मंज़ूर हो जाये,
दो-तीन दिनों की मुझको,
ज़िन्दगी से फुरसत मिल जाये...!
ना जाने वक़्त के...
कौन से शहर,
कौन सी गली या नुक्कड़,
किस अजनबी मोड़ पे,
किस भरी दोपहर, जाने किस पीपल की छाव में,
समंदर के कौन से साहिल की रेत पे,
दिन के किस पहर की दीवार पे,
आँगन की कौन सी मिट्टी पे,...