...

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P3 - छुट्टी की अर्जी...!
काश...
बस ये एक अर्जी मेरी मंज़ूर हो जाये,
दो-तीन दिनों की मुझको,
ज़िन्दगी से फुरसत मिल जाये...!

ना जाने वक़्त के...
कौन से शहर,
कौन सी गली या नुक्कड़,
किस अजनबी मोड़ पे,
किस भरी दोपहर, जाने किस पीपल की छाव में,
समंदर के कौन से साहिल की रेत पे,
दिन के किस पहर की दीवार पे,
आँगन की कौन सी मिट्टी पे,
या हवा के किस झोंके पे ...

आवारापन से भरी भागा-दौड़ी में,
कितने बेहिसाब..
किस्से,
नगमे,
नज़्मे,
और एहसास तक...छोड़ आया हुं...
आदतन, शायद कही भूल आया हुं !

सोचता हुं,
एक दिन जा के चुन लाऊ,
ये कलियाँ यादों के बगीचों से...

और फिर बैठ के किसी हसीन शाम,
सुकून से पिरों के इनको अल्फाजों की डोरी में,
'मेरा आज' सवारुंगा इन से ...!

सोचता हुं,
इस कदर बिताऊंगा कुछ यादगार दिन भी।

इत्मीनान से आना कभी,
तुम्हे भी सुनाऊंगा 'मेरी ज़िन्दगी'...!

- राजकमल
२६ मई २०१३