मेरे जीवन का सफ़र
मेरे ज़िन्दगी का शुभारंभ ,
मेरे माता - पिता के घर से हुआ।
पढ़ाई - लिखाई हुई ,
और कब बिदाई हुई
पता ही न चला।
ज़िन्दगी का हमसफ़र
मैंने स्वयं ही चुना।
ऐसा लगा सपनों का
महल अब हुआ दोगुना ।
मैं और मेरे पती,
दोनों चले एक नये
जीवन की शुरुआत करने,
जहाँ मेरे कदम लगे थोडे़ - से ड़ग - मनाने ।
जीवन के कुछ पडाव के उपरांत -
एक दिन मुझे मेरे पती बोले,
प्रतिभा तु ये सब...
मेरे माता - पिता के घर से हुआ।
पढ़ाई - लिखाई हुई ,
और कब बिदाई हुई
पता ही न चला।
ज़िन्दगी का हमसफ़र
मैंने स्वयं ही चुना।
ऐसा लगा सपनों का
महल अब हुआ दोगुना ।
मैं और मेरे पती,
दोनों चले एक नये
जीवन की शुरुआत करने,
जहाँ मेरे कदम लगे थोडे़ - से ड़ग - मनाने ।
जीवन के कुछ पडाव के उपरांत -
एक दिन मुझे मेरे पती बोले,
प्रतिभा तु ये सब...