...

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मेरा मकान होता
ख़ूबसूरत किसी पहाड़ पर
गर मेरा भी मकान होता
खिलता चॉंद छत पर मेरी
आँगन में सितारों भरा आसमान होता

भेज खिड़कियों से गुनगुनी धूप
हर सुबहा सूरज मुझे जगाता
मिट जाती दिन भर की थकन
नर्म चॉंदनी से जब चॉंद सहलाता

रंग भरी क्यारी का हर फूल
हर सुबहा शबनम से नहाता
कल-कल करता दरिया
हर पल रागिनी सुनाता

रंगीनियां बिखर जाती राहों में
मौसम बहार का जब आता
खुश्क होता मौसम सर्दियों का
नर्म बर्फ की चादर ओढ़ाता

खुशनुमा होते नज़ारे
न ग़म का कहीं निशान होता
ख़ूबसूरत किसी पहाड़ पर
गर मेरा भी मकान होता।


© IdioticRhymer