समझदार
कभी देखता हूं
खिड़कियों से झांककर
कभी सोचता हूं
दहलीज लांघकर
बीत गई जो उमर
रहना चाहूं उसमें दिन भर
नहीं होना समझदार
नहीं जाना उस पार
होता जहां दिलो का व्यापार
नहीं जाना उस पार
नहीं होना...
खिड़कियों से झांककर
कभी सोचता हूं
दहलीज लांघकर
बीत गई जो उमर
रहना चाहूं उसमें दिन भर
नहीं होना समझदार
नहीं जाना उस पार
होता जहां दिलो का व्यापार
नहीं जाना उस पार
नहीं होना...