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एकांत
जब खुद से खुद की लड़ाई हो,
ग़म के मंज़र पे चढ़ाई हो,
जब आँसू खुद ही निकले हो,
जब खुद आँखे मुस्काई हो,
जब दर्द कही से उबरा हो,
जब खुद का जनाज़ा गुज़रा हो,
जब शोकसभा सा मेला हो,
जब ह्रदय भी निपट अकेला हो,
जब इच्छाये सारी पिपासित हो,
जब मौन भी खुद परिभाषित हो,
जब रूह हो विषम अवस्था मे,
जब जटिल अनुभव हो सहजता में,
तब - तब कोई राग अमर होता,
तब - तब कोई कबीरा गाता है,
जब भीड़ बने शत्रु मन की,
तब एकांत मन को भाता है।।
© Vivek
#WritcoQuote #Hindi
ग़म के मंज़र पे चढ़ाई हो,
जब आँसू खुद ही निकले हो,
जब खुद आँखे मुस्काई हो,
जब दर्द कही से उबरा हो,
जब खुद का जनाज़ा गुज़रा हो,
जब शोकसभा सा मेला हो,
जब ह्रदय भी निपट अकेला हो,
जब इच्छाये सारी पिपासित हो,
जब मौन भी खुद परिभाषित हो,
जब रूह हो विषम अवस्था मे,
जब जटिल अनुभव हो सहजता में,
तब - तब कोई राग अमर होता,
तब - तब कोई कबीरा गाता है,
जब भीड़ बने शत्रु मन की,
तब एकांत मन को भाता है।।
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