...

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क्यों न चाहें तुम्हें
क्यों न चाहें तुम्हें...
दिल ये नादान सही गुस्ताख़ थोड़े ही है...

तुम्हें नहीं रहा तो क्या हुआ...
इश्क़ ना-मुराद सही मज़ाक थोड़े ही है....

नज़र मिलाने की जुर्रत होगी कैसे...
कारनामे तुम्हारे इतने पाक थोड़े ही हैं

ज़फ़ाएं तुम्हारी तुम्हें मुबारक...
हम तुम्हारी तरह चालाक थोड़े ही हैं...

तोड़ा तो तुमने बहुत था लेकिन...
फ़िर उठ भी न पाएं कफ़-ए-ख़ाक थोड़े ही हैं...

कोस लेते हैं बस इसी तरह तुमको...
ले लें नाम तुम्हारा इतने बेबाक थोड़े ही हैं...

© random_kahaniyaan