...

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मुसाफिर
मुसाफिर हैं बहते धारों की तरह,
ख्वाब खड़े हैं किनारों की तरह.
चाॅंद की चाॅंदनी हमें नसीब नहीं,
खुशी मिली है सितारों की तरह.
भटक रहे हैं मंजिल की तलाश में,
भीड़ में शामिल हैं हम हजारों की तरह.