...

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तुम हो कि मानते नहीं
तुम हो कि मानते नहीं
पर फिर भी तेरे इंतज़ार में
खुद को जला रहे दीपक की भाँति

अब कैसे तुम्हें मनाये
कि तुम मान जाओ
पर फिर भी खुद को ज़िंदा रख रहे बिन पानी के मछली की भाँति

और क्या करे तुम्हारे प्रेम के ख़ातिर
मैं हर वो किमत चुकाऊँगा
जिसके लिए ये दुनिया मरती है अपनो के भाँति

बेशक हम जी लें तुम्हारे बगैर
पर वो जिंदगी कहाँ है
जो जीवन है पानी की कोमलता के भाँति

© ajeetsooryoday