...

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अंतस्तल
अंतस्तल ही सही कसौटी है
अस्तित्व निर्भर है जिस पर
अस्तित्व ही असली आवास है
आदमीयत निर्भर है जिस पर
अंतस्तल के स्पंदन से ही
कविता का गंगावतरण
हो जाता है अवनि पर
होता समाज उसीसे सम्पन्न
वह देश जो अपनी संस्कृति खोता है
बुद्धि उसकी अपने आप विकल होती है
बुद्धि जब विकल बन जाती है
तब आचार अनाचार बन जाता है
बुद्धि विकल हो राज करती है
तो सहज ही मानव जंगली बनता है
अंतस्तल की करुणा स्वंति में स्नान
करनेवाला मानव करता अपनी ही संस्कृति के दर्शन
पूछती है आज भारत नारी
क्यों घसीटते हो भुजा पकड़ मेरी
अपनी सूत्रबद्ध उपयोगी संस्कृति से
उस विश्रृंखल सूत्रहीन संस्कृति के गड्ढे में
अपनी संस्कृति से अनुबद्ध
संस्कृति है मंगलसूत्र संस्कृति
जिस से निर्मल समग्र बनकर
बहती रहती नारी जीवन संस्कृति
आचारवती आर्य भूमि पर
होगा प्रवाह कविता स्ववंती का
जब तक तब तक टिक
नही सकते विकल संस्कृति के पग
© Kushi2212