वसंत प्रियतमा
मलय समीर मंद मंद चाल ,
आमोदितत है यह संसार,
पुष्पों के पराग से ,
लता के मधुर राग से ,
रस्वती देखो चली,
उसके ठेडी-मेङी चाल।
आह!
रमण कर प्रियतमा ,
पद्मनी की चाल,
प्रेम के रस तेरे होठों में ,
और कपोल तेरे लाल।
इस रूप को आत्मा ने ,
अपने हृदय में बसा डाला ,
क्या ! अद्भुत संरचना है ,
प्रेम राग है बह डाला।
केश तो काली है और सुगंध है केसर ,
आंखें तेरी निराली है ,
झुमके तेरे कान की
और पीतांबर साङी...
आमोदितत है यह संसार,
पुष्पों के पराग से ,
लता के मधुर राग से ,
रस्वती देखो चली,
उसके ठेडी-मेङी चाल।
आह!
रमण कर प्रियतमा ,
पद्मनी की चाल,
प्रेम के रस तेरे होठों में ,
और कपोल तेरे लाल।
इस रूप को आत्मा ने ,
अपने हृदय में बसा डाला ,
क्या ! अद्भुत संरचना है ,
प्रेम राग है बह डाला।
केश तो काली है और सुगंध है केसर ,
आंखें तेरी निराली है ,
झुमके तेरे कान की
और पीतांबर साङी...