...

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ज़िंदगी की राहों में
ज़िंदगी की राहों में कुछ भूला हूं
कुछ याद आया है
इक तुझे पाया तो सब कुछ पाया है
मैंने सुना है तुम्हारी सांसों की सरगम को
ऐसा लगता है जैसे श्री लता मंगेशकर जी ने
कोई प्यारा सा गीत गाया है

मैंने तुम्हें कुछ कहां नहीं
फिर क्यों सेब जैसे गालों पर गुस्सा आया है
मैं भूल गया हूं सारी दुनिया
इक तुम्हें देखकर
मेरी ज़िंदगी का हर एक पल तुझमें ही समाया है
खोल दो जुल्फें अपनी और खो जाने दो मुझे
बड़ी मुददतो बाद तो सुकून मेरे पास आया है

मैंने शराब नहीं पी है यकीन करो मेरा
बस तुम्हें देखकर नशा सा छाया है
होश में आने को दिल नहीं करता
इतना हसीन ख़ुदा ने तुम्हें बनाया है

मैं तो तुम्हारी मुस्कराहट के रंगों में घूल चुका हूं
लगता है होली का त्योहार आया है
नसीब है मेरा जो तुम्हें इक झलक देख सका
तुम्हें देखकर ही तो दिल को करार आया है
मैंने अहसास किया है तुम्हें गले लगाकर
ख़ुदा हमारे अंदर ही समाया है

written by अंगराज कर्ण




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