ए साक़ी
सुरूर हर मर्तबान ,
लगा इस शराब का हुआ।
इश्क़ ए मज़हब ,
ना दीदार कभी हुआ।
ए साक़ी, हर मर्ज़ की दवा,
‘इस महफ़िल’ का आग़ाज़,
तेरे मिज़ाज से हुआ।
© Five Fifteen
लगा इस शराब का हुआ।
इश्क़ ए मज़हब ,
ना दीदार कभी हुआ।
ए साक़ी, हर मर्ज़ की दवा,
‘इस महफ़िल’ का आग़ाज़,
तेरे मिज़ाज से हुआ।
© Five Fifteen