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नववर्ष पर आधारित काव्य
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
कुछ शांत तो कुछ तूफान सी,
जिंदगी चल रही थी ऐसे जैसे
किसी नदी के धारा प्रवाह सी,
कभी वह रुकती थी महीनो में,
तो कभी गुजरती थी सालो में!
जिंदगी यूंही चल रही थी अपनी,
सुबह- शाम की पूजा और अजानो में॥
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
कि जिंदगी एक सफर है ट्रेन का,
जाते जाते बता रहा था वो।
जिंदगी का एक और साल भी गुजर गया,
कुछ ऐसा आभास दिला रहा था वो॥
फिर भी कितने अनजाने अनभिज्ञ बने है,
सच से जैसे मुंह ही मोड़ लिए हो हम॥
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
और मना रहे थे हम सब खुशियां फिर भी,
दारू,चाय और चश्के में मस्त !
नाच गा रहे थे यूंही सब ऐसे जैसे,
नाच रहा कोई बरखा का मोर!
चारो तरफ घमाशान मचा था॥
कही जश्न तो पटाखों का विकट शोर!
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
जिंदगी चल रही थी ऐसे जैसे,
कोई वंदे भारत की हो रफ्तार!
कोई तड़प रहा फुटपाथों पर भूखे,
तो कोई फेक रहा था छप्पन भोग!
इंसानों की तो कोई कीमत ही न थी,
चंद पैसे में ही बिक गए थे लोग॥
एक साल खो दिए थे फिर भी!
नए साल का जश्न मना रहे थे लोग॥
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
© ranvee_singh
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
कुछ शांत तो कुछ तूफान सी,
जिंदगी चल रही थी ऐसे जैसे
किसी नदी के धारा प्रवाह सी,
कभी वह रुकती थी महीनो में,
तो कभी गुजरती थी सालो में!
जिंदगी यूंही चल रही थी अपनी,
सुबह- शाम की पूजा और अजानो में॥
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
कि जिंदगी एक सफर है ट्रेन का,
जाते जाते बता रहा था वो।
जिंदगी का एक और साल भी गुजर गया,
कुछ ऐसा आभास दिला रहा था वो॥
फिर भी कितने अनजाने अनभिज्ञ बने है,
सच से जैसे मुंह ही मोड़ लिए हो हम॥
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
और मना रहे थे हम सब खुशियां फिर भी,
दारू,चाय और चश्के में मस्त !
नाच गा रहे थे यूंही सब ऐसे जैसे,
नाच रहा कोई बरखा का मोर!
चारो तरफ घमाशान मचा था॥
कही जश्न तो पटाखों का विकट शोर!
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
जिंदगी चल रही थी ऐसे जैसे,
कोई वंदे भारत की हो रफ्तार!
कोई तड़प रहा फुटपाथों पर भूखे,
तो कोई फेक रहा था छप्पन भोग!
इंसानों की तो कोई कीमत ही न थी,
चंद पैसे में ही बिक गए थे लोग॥
एक साल खो दिए थे फिर भी!
नए साल का जश्न मना रहे थे लोग॥
रनवीर हरबार दिसंबर कुछ यूंही
याद दिला रहा था मुझको,
जाते जाते विदा कह रहा था और,
काफी बाते याद दिला रहा था वो॥
© ranvee_singh
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