...

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सोचता हूं वहम ही रख लूं
छोटी सी ज़िन्दगी में क्या अज़ाब देखा है
दुश्मन की बाहों में अपना ख़्वाब देखा है....!

वो जो गए थे कभी, बशर करके
उन्हीं से हासिल शय का ख़िताब देखा है ...!

आरज़ू ना रही फिर और मय की
जो प्याले के बदन पर हिज़ाब देखा है .......!

सोचता हूंँ, कोई वहम ही रख लूंँ दिल में
हक़ीक़त का हर किस्सा ख़राब देखा है.....!

नेकी भटकती फिरती रिज़्क की ख़ातिर
बदी को चखते यहांँ, हर स्वाद देखा है.......!

हांँ काफ़िर हूंँ तो बुरा क्या हूंँ
ख़ुदा के बन्दों में ब्होत अज़ाब देखा है......!

© samrat rajput


#Gazal #Khwab #Hakikat