6 views
बड़ी हुई जो सोच
बड़ी हुई जो सोच
बढ़ने लगी अप्रोच
टेढ़ा मेंढ़ा मत चले
देख आयेगी मोच
बाहर कुछ भी हैं नहीं
भीतर खुद को खोज
बह जाए न सागर गम का
अपनें आंसू पोंछ
सच की बाहें थाम ली
न गले लगा अफ़सोस
आईना मुझसे कह रहा
क्यूं मिलता हैं रोज़
© पं.रोहित शर्मा
बढ़ने लगी अप्रोच
टेढ़ा मेंढ़ा मत चले
देख आयेगी मोच
बाहर कुछ भी हैं नहीं
भीतर खुद को खोज
बह जाए न सागर गम का
अपनें आंसू पोंछ
सच की बाहें थाम ली
न गले लगा अफ़सोस
आईना मुझसे कह रहा
क्यूं मिलता हैं रोज़
© पं.रोहित शर्मा
Related Stories
11 Likes
2
Comments
11 Likes
2
Comments