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मेरा चांद
26.11.2023

#मेराचांद

छू लेने को, चांद की ख्वाहिश
'मन' बचपन में, घिर आयी फिर
मां ने जैसे, सीढ़ी लगाकर
प्यास बुझाई, कैसे आएगी फिर ।

क्या जानू, मै खेल खिलौने
अंखियों को मेरी, है भाया शशि
हाथ बढ़ाकर, इसको छूना ही मैने
लालसा दिल की, हर दिन बढ़ी ।

रोज़ चमकता, नज़र मुझ पर रहती
मैं कैसे भूल जाऊं, रजनी तिमिर
बेदर्द नहीं, हमदम दिलदार कहूंगी
मिलन की आस, जगी आज फिर ।

यादों का मेला, रंग लगाए फिरती
आंचल की छाया, मांगे दिल फिर
अंग संग मेरे, महक में रहकर
निशां स्वरूप, मिल जाती खिल ।

अजब अनोखा, ये नभ का साथी
झिलमिल तारों, संग रहता मिल
धरा से बस, निहार मैं इसको
खुश हो जाती, अपना 'मन' जीत ।

रजनी भंडारी 'मन'
(स्वरचित)
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