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मेरी कमजोरियों की तिजोरी जरा बड़ी हैं
मेरी कमजोरियों की तिजोरी जरा बड़ी है
दिल बच्चा सा मेरा जुबां एक दम खरी है
मेरी कमजोरियों की तिजोरी जरा बड़ी है
सच कहता हूं यारो मुझे अपनी कहां पड़ी है..

नन्नी नन्नी बातों को भी दिल से लगा लेता हूं
टूटे दिलों को भी अपने सीने से लगा लेता हूं
हर शख्स में दिखता है मेरा सतगुरु प्रीतम प्यारा
इसलिए हर एक शख्स को अपना बना लेता हूं
किसी का दिल दुखाना मेरे लिए सबसे मुश्किल घड़ी है
मेरी कमजोरियों की तिजोरी जरा बड़ी हैं...

भूखे को प्यार से रोटी खिलाऊ
तन ढकने के लिए कपड़े दिलाऊं
जो चलते नंगे पैर तपती धरा पर
दिल करता है उनके कदमों की चप्पल बन जाऊ
दिल सेवा में मेरा,रूह मेरी सतगुरु में पड़ी हैं
मेरी कमजोरियों की तिजोरी जरा बड़ी हैं...

मेरी ही फिकर नहीं मुझे ना धन कमाने की
बस फिक्र है तो अपने भीतर अलख जगाने की
बस निभा सकूं अपनी जुबान से उगली ग्वाली
निभे वचन मेरा ना फिक्र अपने प्राण गवाने की
पुष्प निखरे मनोज संग प्रीतम की दया बड़ी हैं
मेरी कमजोरियों की तिजोरी जरा बड़ी हैं।

© Manoj Vinod-SuthaR