नदी न होती
होती हैं कश्तियाँ अकेली
नदी नहीं होती,
गर चलती पतवार के सहारे
हिमशिख से ना बही होती,
हवाएं उठती हैं जिस से,
ज़रिया बादलों का वही है,
जो भरती न समंदर को,
जो बरसती न बारिशों में,
तो दुनिया चैन से नहीं सोती
और दुनिया में "अज़ीज़" ,
कभी कोई नदी न होती,
@अज़ीज़निखिल
© All Rights Reserved
नदी नहीं होती,
गर चलती पतवार के सहारे
हिमशिख से ना बही होती,
हवाएं उठती हैं जिस से,
ज़रिया बादलों का वही है,
जो भरती न समंदर को,
जो बरसती न बारिशों में,
तो दुनिया चैन से नहीं सोती
और दुनिया में "अज़ीज़" ,
कभी कोई नदी न होती,
@अज़ीज़निखिल
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