रहने-दिया
जो छूटा जहां उसको वहीं पर रहने दिया
सोचा नहीं कुछ जो हुआ उसे होने दिया
यूं तो बहुत मिलें हैं लोग ज़िन्दगी में मगर
थम जाएं जो,उनसे न ख़ुद को मिलने दिया
अब नहीं रही है उल्फ़त किसी से मुझको
उसके ज़ख्मों को न अब तक सिलने दिया
जो कभी हंसता रोता था संग संग मेरे
उसने मुझे मुद्दतों तक क्यूं अकेला रोने दिया
मैं जाग उठता हूं अक्सर रातों को सहसा
यादों ने उसकी न मुझे चैन से सोने दिया ।।
© मनराज मीना
सोचा नहीं कुछ जो हुआ उसे होने दिया
यूं तो बहुत मिलें हैं लोग ज़िन्दगी में मगर
थम जाएं जो,उनसे न ख़ुद को मिलने दिया
अब नहीं रही है उल्फ़त किसी से मुझको
उसके ज़ख्मों को न अब तक सिलने दिया
जो कभी हंसता रोता था संग संग मेरे
उसने मुझे मुद्दतों तक क्यूं अकेला रोने दिया
मैं जाग उठता हूं अक्सर रातों को सहसा
यादों ने उसकी न मुझे चैन से सोने दिया ।।
© मनराज मीना