...

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बस ये याद दिला रहे हैं
तुम्हारी तकलीफ़ को नज़रंदाज़ नहीं कर रहे हैं
बस ये याद दिला रहे हैं

की तुम्हें दर्द किसी ग़ैर ने दिया
हमें अपनों ने पराया कर दिया

कुछ महीनों सालों की बातों का ग़म है तुम्हारी रातों में
हमारी पूरी ज़िंदगी का दुख है हमारी वातों में

तुम्हें हमारी आवाज़ नहीं सुन्ती है
क्यूँकि तुम खरोंचों पर रो रहे हो
हम उम्र भर के ज़ख़्मों से मायूस हैं
झूट नहीं है पर ज़ोर से रो रहे हो
दर्द की हम तुलना नहीं कर रहे हैं
तुम बस हमारे दर्द को नज़रंदाज़ कर रहे हो

इस हम में सिर्फ़ मैं नहीं कुछ अज़ीज़ भी हैं
जिनकी खनियों से ज़्यादा दर्द को...