...

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.... परिंदे की उड़ान....🕊️❤️
आस्मां की तस्वीर जो जहन में बसाए रखता था कभी ,
अब खुले आसमान में भी वो परिंदा हताश क्यों है..?
उसने तो ऊंची उड़ान का सपना देखा था न ,
फिर अब वो परिंदा इतना निराश क्यों है..?

कैद में जो सोचा करता था कि उडूंगा मैं भी एक दिन खुले आसमान में ,
पर अब वो अपने पंख समेटकर क्यों बैठा है..?
हौंसला उसका बुलंदी छूता था कभी ,
फिर अब वो गमों को सहेजकर क्यों बैठा है..?

उसे आज़ादी ही तो चाहिए थी न हमेशा से ,
फिर उसे अब ये कैद क्यों भाने लगी है..?
ये बंधन , ये घुटन से वास्ता तोड़ना था उसे ,
पर अब उसे ये क्यों रास आने लगी है..?

उसके अंदर का जुनून तो मिसाल था ,
तो अब ये जुनून कहां खो गया है..?
जगाता था जो सबको घने अंधेरों से ,
अब वो परिंदा खुद कहां सो गया...?

पूछना है मुझे कि .....
ये मायूसी देन है अपनों की या खुदके खयालों का बोझ उसे यहां ले आया है ....?
और पूछना है मुझे कि ,
सताया गया है वो हर उम्मीद ए शक्स से या उसका खुद जिदंगी से रुसवा होना , उसे यहां ले आया है.....?



© minisoni