...

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नारी
पावन गंगा सम नारी तुम
स्व जीवन की अधिकारी तुम।।

तुम हो प्रतीक सर्वस्व त्याग का
तुम हो प्रतीक संघर्ष आग का
इस भूतल की हितकारी तुम
स्व जीवन की अधिकारी तुम।।

हो पुरुष जीवन की तरणी नाव
झरते हैं पलकों से असंख्य भाव
ना अवला हो ना बेचारी तुम
स्व जीवन की अधिकारी तुम।।

तुम हो समाज का अभिन्न अंग
फीके तुम बिन सब जग के रंग
छोड़ो मानव हो ईश्वर की दुलारी तुम
स्व जीवन की अधिकारी तुम।।

हो करुणा वात्सलता की मिशाल
हो चंडी गर पहनो मुंडमाल
हो केवल लाखों पर भारी तुम
स्व जीवन की अधिकारी तुम।।

जागो खेलो नई पारी तुम
स्व जीवन की अधिकारी तुम।।