...

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दर-ब-दर ...
भटक रहा था कब से~ मैं दर-ब-दर रे ...
कि तूँ हो न सका मेरा भी होकर रे ....

मैं समझ नहीं पाता, खता क्या हो गई मुझसे
अब लौट भी जा... राह मैं तक रहा कब से ।

ये तेरी अदा थी ,नज़रें फेर ली तुमने
ये......तेरी अदा थी , नज़रें..... फेर ली तुमने.....
ये मेरी अदा है, इश्क में भी मरना सीख लिया मैंने.... ॥

© ya waris