...

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तस्वीर
मैं काफ़ी अरसे से यूँ मुसलसल तुम्हारे चेहरे को तक रहा हूँ
कि ये जो चेहरा है जैसे रोशन इसी से ऐसा कमाल कर दे
जवाब में मैं कहूँ मोहब्बत
कोई तो ऐसा सवाल कर दे
न जाने क्यों मुझको ये लग रहा है
तुम अपने हाथों को मेरे हाथों में यूँ रखोगी
कि जैसे दुनिया की सब मसर्रत हमारे दामन में ला के रख दी
और फिर हया से झुका के सिर को ये कहोगी
कि यहीं मोहब्बत तमाम कर दे
मैं इन ख्यालों की रहगुज़र से गुज़र के इक पल
ये सोचता हूं
ये चेहरा जैसे वहीं है साकित वहीं है अब तक
न इसमें कोई जुंबिश ए बेताब है न कोई हरकत
मगर ये चेहरे का नूर देखो
और फिर तिलिस्म ए सुरूर देखो
तुम्हे ये बिल्कुल नहीं लगेगा
कि वो अभी भी यहाँ नहीं है
कहीं नहीं है
तुम्हे पता क्या
तुम अब भी उसके
ख़्याल से ही
हो मुख़ातिब
अब इसमें कोई शक नहीं वो रूह की तासीर है
मैं मुख़ातिब हूँ उसी से
सामने तस्वीर है ।


शाबान नाज़िर ✓
© SN