तुम नहीं सुधरोगें
बहानों की खान से, एक नया बहाना बाहर आया, जब हमारे अजीज ने, तुम नहीं सुधरोगें यह फरमाया, आज फिर हमारा यकीं लडखड़ाया, थोड़ा सहमा फिर दुख से मुस्कराया, सोचा हम जहाँ सुधार की गुजाइंश तलाश रहे थे, वही हमें उलझनों में फांस रहे थे, यह कैसी रवायत है, यहाँ शिकायतों को भी शिकायत है, यह असत्य हमें हिला गया, जबरन बिगड़ो में मिला गया, उनका दोष और हम मदहोश, यहाँ आत्मविश्लेषण जरुरी हैं, यही सत्यता की धुरी हैं। ( डी एस गुर्जर)
Related Stories