समाज में कहीं कहीं
कहीं कड़ी धूप से फसलें सूख रही थी,
कहीं बादल ने बरस कर घरों को ढहा दिया।
कहीं बेबसी दाने-दाने को मोहताज थी ,
कहीं दाने डालने वालों ने पैसे को पानी में बहा दिया।
कहीं बचपन ने बचपना छोड़ जिम्मेदारियां उठा ली,
कहीं जिम्मेदार लोगों ने पूरा घर जला दिया।
...
कहीं बादल ने बरस कर घरों को ढहा दिया।
कहीं बेबसी दाने-दाने को मोहताज थी ,
कहीं दाने डालने वालों ने पैसे को पानी में बहा दिया।
कहीं बचपन ने बचपना छोड़ जिम्मेदारियां उठा ली,
कहीं जिम्मेदार लोगों ने पूरा घर जला दिया।
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