रात का गवाह.......स्ट्रीटलाइट्स
#अकेलास्ट्रीटलाइट
रात की चादर ओढ़े,
जब पूरा शहर नींद की आगोश में समा जाता है,
मैं, एक अकेला स्ट्रीटलाइट,
अपनी हल्की सी रोशनी में
हर रात नई कहानियां बुनता हूं।
सड़क किनारे पड़ा बच्चे का टूटा हुआ खिलौना,
जैसे किसी मासूम का अधूरा सपना हो।
वो मुड़ा-तुड़ा, कटा-फटा पोस्टर,
जो कभी उम्मीदों का चेहरा था,
अब उसके शब्द धुंधले पड़ चुके हैं,
पर यादें अभी भी जिंदा हैं।
सड़क के किसी कोने में बैठा वो बूढ़ा भिखारी,
जिसकी झुकी कमर और कांपते हाथ,
मेरी रोशनी में उसकी लहराती परछाईं को
और अकेला बना देते...
रात की चादर ओढ़े,
जब पूरा शहर नींद की आगोश में समा जाता है,
मैं, एक अकेला स्ट्रीटलाइट,
अपनी हल्की सी रोशनी में
हर रात नई कहानियां बुनता हूं।
सड़क किनारे पड़ा बच्चे का टूटा हुआ खिलौना,
जैसे किसी मासूम का अधूरा सपना हो।
वो मुड़ा-तुड़ा, कटा-फटा पोस्टर,
जो कभी उम्मीदों का चेहरा था,
अब उसके शब्द धुंधले पड़ चुके हैं,
पर यादें अभी भी जिंदा हैं।
सड़क के किसी कोने में बैठा वो बूढ़ा भिखारी,
जिसकी झुकी कमर और कांपते हाथ,
मेरी रोशनी में उसकी लहराती परछाईं को
और अकेला बना देते...