...

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स्त्री पीडा
ना कर तू ग़म
ना कर आंखें नम
तेरी नहीं सबकी यही कहानी है
जाने अनजाने में सभी पानी पानी है।
नारी जन्म पीड़ा की
अनलिखती दास्तां है
मां ही जब न समझे स्वयं पीड़ा
किसी से फिर क्या कहती वो।
यहां बेटों को भोजन बेटी
को गम खाने सिखाई जाती है,
उसके मेहनत गिनाई जाती है।
शारीरिक मजबूती और भावनात्मक
सपोर्ट की ज़रूरत जैसे चीज़ नहीं है।
जब जिसकी जैसी ज़रूरत
वैसी ही हर रिश्तों में स्त्रियां परोसी गई है।
भोग्य छोड़ कर और कुछ नहीं वो।
जहां कहीं जाए वो एक चलती
फिरती मांस छोड़कर कुछ नहीं है।
सजा यह जन्म है इसे मजे से काट लो
आंसुओं को काजल तले दबा कर
होठों को रंग कर मुस्करा लो।

© Sunita barnwal