...

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प्रजातंत्र
प्रजातंत्र नहीं यह राजतन्त्र हैं इसे जड़ से मिटाना हैं
आते है यहाँ समाजसेवी बनकर पर होते हैं समाजद्रोही
वादे हजार जनता से पर पुरे करने की बारी आने पर नजर नहीं आते हैं ।
हर पांच बर्षों में आते हीं अलग-अलग पर काम सबका एक ही हैं ।
जनता द्वारा बनाये जाते हैं और जनता को ही खत्म करते जाते हैं
अपनी कुर्सी बचाने के लिए ना जाने किस हद तक गिर जाते हैं ।
यह सिलसिला ना जाने कब से चल रहा और यूँही चलता जायेगा ,
हर बार यूँही उम्मीदों पर पानी फिरता जायेगा ।
अब बस रोकना हैं इस सिलसिले को
देश को एक नया सूर्योदय दिखना हैं ,
वोट की राजनीति को ख़त्म कर अब राष्ट्रपति शासन लाना हैं ।
प्रजातंत्र नहीं यह राजतंत्र हैं, इसे जड़ से मिटाना हैं ।
..आराधना ..








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