...

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तुम याद आए
होता है ना
जब जुड़ते हैं हम किसी इंसान से
तो उससे जुड़ी हर चीज से
रिश्ता बन जाता है

उसका नाम सुन कर
पलट जाते हैं हम
यूं ही

शायद ऐसा ही कोई रिश्ता है
तुम्हारे शहर से
कभी गई नही
बस नाम सुना था
और अपना सा लगने लगा था
तुम्हारी तरह ही
तुम्हारे शहर का नाम भी

तुम्हारे शहर से गुजरने वाली हर ट्रेन
मेरे शहर से हो कर जाती है
हां ये इत्तफाक ही है
पहले रोना नहीं आया कभी
वो नाम सुन कर

तुम हो गए पराए पर
इससे जुड़ा
रिश्ता नही हुआ शायद
अजीब है ना
तुम अजनबी जो
और शहर अपना सा लगता है
ये नही बदला
तुम्हारी तरह

©प्रिया सिंह

© life🧬