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युद्ध विभीषिका
आग उगल रहा है आज आसमां
पर कुछ वक्त ठहरिए
एक दिन ये ऐसा रोएगा अपनी प्रेयसी
धरती की बर्बादी पर
कि यूँ लगेगा जैसे सब फट पड़ने को है..इस कायनात में
उस वक्त
इंसान कोसेगा अपने खुदा को उस कहर के लिए ।

नन्हे बच्चों की करुण पुकारें
आज बर्दाश्त में हैं इस आसमां के
ये वीभत्स मंज़र काफ़ी है
पत्थर जैसी छाती में लावा भरने को।

जगह-जगह पड़े माँस के लोथड़े,
लाशों पर भिनभिनाते कीड़े-मकोड़े
इन लाशों को कचटोने वाले पक्षी भी इस ताक में होंगे कि कब इस...