...

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घर से दूर
हजारों की भीड़ में अपनी तकदीर बनाने चले आए है , हजारों तस्वीरो से अलग अपनी अलग तस्वीर बनाने चले आए है , कोई साथ दे ना दे भले साथ उस परिवार का है ये मान इतनी दूर चले आए है , अब उन उंगलियों को भी बहुत दूर छोड़ आए है ,वादा तो खुद से किया था मगर मंजिल की आखिरी सीढ़ियों तक जाना है बस यही आस लेकर घर से बड़ी दूत चले आए है...
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