तुम्हे क्या कहूँ
कुछ बात है, तुम्हे क्या कहूँ,
अंधेरी रात है, तुम्हें क्या कहूँ।
यूँ तो सो रहा तेरा शहर, बङे सुकूँ से,
इधर बरसात है, तुम्हें क्या कहूँ ।।
गैर का हाथ है, तुम्हें क्या कहूँ,
तेरी बारात है, तुम्हें क्या कहूँ।
यूँ तो नया सवेरा है तेरा, पर इधर,
हिज्र की रात है, तुम्हें क्या कहूँ ।।
टूटे जज्बात है, तुम्हें क्या कहूँ,
मिली फिर मात है, तुम्हें क्या कहूँ।
यूँ बस अब तेरी यादों का सफर, और ये,
वीरान कायनात है, तुम्हें क्या कहूँ ।।
#dying4her
©AK47
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अंधेरी रात है, तुम्हें क्या कहूँ।
यूँ तो सो रहा तेरा शहर, बङे सुकूँ से,
इधर बरसात है, तुम्हें क्या कहूँ ।।
गैर का हाथ है, तुम्हें क्या कहूँ,
तेरी बारात है, तुम्हें क्या कहूँ।
यूँ तो नया सवेरा है तेरा, पर इधर,
हिज्र की रात है, तुम्हें क्या कहूँ ।।
टूटे जज्बात है, तुम्हें क्या कहूँ,
मिली फिर मात है, तुम्हें क्या कहूँ।
यूँ बस अब तेरी यादों का सफर, और ये,
वीरान कायनात है, तुम्हें क्या कहूँ ।।
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