...

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किसान
देखो क्या दशा हुई दाता की,
कैसी माया है ये विधाता की,
मुल्यहीं हुई जान अन्नदाता की,
कगार पर है मानवता युग की।
जो मुसीबत मे अन्नदाता बन पड़ा,
आज नही है कोई उसके साथ खडा,
कर्जा लेकर मिटाई भूख देश की,
आज पलट गयी है काया उसकी।
नही मांग पा रहा अपना अधिकार,
ऐसी घडी आई ,है हम पर धिक्कार,
सुनो इस देश के किसान की ललकार,
लौटाओ उसको उसके अधिकार।

© nikita