...

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ख़ामोश फ़िज़ा
#WritcoPoemPrompt24
Dark is the night,
Darker the soul,
Fathomless depths,
Stories untold...

क्यों इस बार कुछ अलग सा माहौल है दोस्तों,
त्योहारों के मौसम में क्यों है खामोश फ़िज़ा!

बेकरार तो है दिल अपनों से मिलने के लिए मगर,
शायद कुछ दिन और गुज़ारने होंगे अपने ही घरो में !

इस कम्बख्त कोरोना ने सभी को मायूस कर दिया,
न जाने कब फिर से लौटेगी हमारी सभी की खुशियां !

बड़े छोटे सभी की ख्वाइशे कुछ मर सी गई है,
ज़िन्दगी अपनी बस खौफ में जी रहे है सभी !

बाशिंदे तो खामोश है अपनी ही परेशानी में "रवि",
खामोश आवाज़ है देखो पतझड़ के पत्तो की !

अब तो दुआ सुन ले ए आसमान वाले,
बन्दे बेकरार है मुअज़्ज़ज़ा देखने को तेरे !

राकेश जैकब "रवि"