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ख़ामोशी की इक चीख..........✍🏻
ख़ामोशी की इक चीख सुनाई दे रही है
ना जाने ये कैसी आहट दिखाई दे रही है
ये चहचहाती निगाहों की रंगत खो गई है
ख़ामोश अश्कों की इक गँवाई दे रही है

वक़्त के आजमाइश का ज़िक्र है लबों पे
हाल-ए-हालातों की कैसी दुहाई दें रही है
दर्द से लेकर ज़ख़्मों तक की चुप्पी टूटी है
ये दुनिया मुझे कैसी मुँह-दिखाई दे रही है

उम्र की बंदिशें क्यों है वक़्त की जंजीरों में
चेहरे की ख़ामोशी धीरे से सफ़ाई दे रही है
इसके उसके मिज़ाजों की फ़िक्र समेट रहें
मशहूर सवालों से क्यों नहीं रिहाई दे रही है

ख़ामोश चीखें ज़माने के चक्रव्यूह में दफ़न है
मुझे ये तमाम इम्तिहानों की इक बधाई दे रही है
अश्कों के साथ साथ एक ज़िंदगी थमने चली
चारों ओर बस तोहमतों को इक कमाई दे रही है

सब की बातों को आहिस्ता से महसूस कर लिया
ये ख़ामोशी ना जाने कितनों को रिहाई दे रही है
कल आज और कल के तमाशों का इक ज़िक्र हूं
ख़ामोशी की चीखें सब आज इक गँवाई दे रही है

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes