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" ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!" 🍁
ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!🍁

ये कैसी जंग छिड़ी है, मेरे अंतर्मन में!
च़िता सी सुलगे, चिंतन-मनन में!

हर तरफ़ को़हरा, धुआं सा उठता है,
ज्वारभाटा बन जाता छण भर में!

तर्पण जैसे बवंडर, हृदय के कण-कण में!
सूक्ष्म छितिज धुंधलाया, ध्रुव तारा गगन में!

अघोर रहा था प्रेम बन सुन्दर चितवन में,
घोर अंधेरा फ़ैला कब, ज्ञान नहीं अर्नब में!

ये कैसी धरा पर भीषण युद्ध कोहराम मचाए,...